मन की बातें
- राजयोगी बी.के.सूरज भाई जी
प्रश्न -ः मैं एक कुमार हूं । मैं दस वर्ष ज्ञान में चला , फिर मैंने बुरे संग में आकर ज्ञान छोड दिया, बहुत विकर््म कर लिये । अब मैं पुनः ज्ञान में आ गया हूं, परंतु खुशी नहीं रहती, योग भी नहीं लगता । इस समस्या से बाहर निकलने के लिए मैं क्या करूं ?
उत्तर -ः भगवान का बनकर उसे छोड देना - यह स्वयं में ही बहुत बडा दुर्भाग्य है , इसलिये बुरे संग से बचने का बाबा बहुत इशारा देते हैं । क्योंकि आपने भगवान को तो छोडा ही, परंतु बहुत विकर््म भी कर लिये तो उसकी सजा तो आपको यही मिल रही है कि आप खुश नहीं रह रहे हैं ।
अब पास्ट को भूलकर आगे की ओर बढो । जितने पाप किये हैं उससे 100 गुणा पुण्य करो । स्थूल यज्ञ सेवा में लग जाओ । इससे पहले-पहले तो आपकी खुशी लौटेगी । विकर्मों के कारण आपकी वृत्ति अति दूषित हो चुकी है । उसे स्वच्छ करने की साधना करो । आत्मिक दृष्टि , अशरीरीपन व स्वमान की साधना । हर घंटे में 3 बार ये अभ्यास 6 मास तक अवश्य करें , तब देहभान व दैहिक दृष्टि समाप्त होगी ।
दस-दस मिनट बैठकर 4 बार कॉमेन्टरी की मदद से योग लगाओ । सवेरे उठते ही 108 बार लिखो - मैं मास्टर सर््वशक्तिमान हूं तथा रात्रि सोने से पूर्व 108 बार लिखें - मैं एक महान आत्मा हूं । 6 मास ये सब साधनाएं करिये । अमृतवेले अवश्य उठना व मुरली मिस कभी भी न करना ।
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